लक्ष्य निकट पर मार्ग कठिन हो क्षितिज दिखे पर सूर्य मलिन हो मन की शक्ति जब भी तेरी थोड़ी धुंधली होने आए उम्मीदों की ज्वाला को संशय का अंधियारा खाए थोड़ी आग बचा रखना तुम धीमे सही मगर तपना तुम जो खोया उसका क्या रोना व्यर्थ ही है सपने ढोना कोई सपना ना होना हर सपना अपना होना है कुछ भी अपना ना होना शायद सब कुछ अपना होना है भला हुआ जो सपने टूटे घर बिछड़ा और अपने छूटे रजवासों के बीच भला कब मानुष 'राम' बना करता है। जो फिरता, वहीं तिरा करता है।
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कोई सपना ना होना
हर सपना अपना होना है
कुछ भी अपना ना होना
शायद सब कुछ अपना होना है
This always reminds me of shiv ji .