“क्या कभी नंगे पांव जमीं पर पैर रख महसूस किया है?
तलवों को भेदती बिजली सी एक लहर
जो रीढ़ से होते हुए मस्तिष्क तक जा पहुंचती है।
“बारिश में भींगते हुए सोचा है? कितना अद्भुत होता होगा, बूंद की तरह आसमान से उतरके धरती के अंतःकरण में धीमे धीमे सिमट जाना ।
“हरी घास देख हो सकता है तुम्हारा हृदय भी छलांगे मारता हो, एक छोटे सफेद खरगोश की तरह।
“आंखे बंद करके क्या तुमने उड़ान भरी है?
“सपने में ही सही परंतु कभी तो हिमालय की सर्द हवा से तुम्हारे शरीर में सिहरन आई होगी।”
यदि नहीं, तो हो सकता है तुमने अपूर्णता में ही अपनी सारी चेतना व्यर्थ कर रखी हो और उलझा रखा हो स्वयं को अधूरी लालसाओं के बीच। और पूर्णता और मीठे पानी के झरने जैसा बहता वो परम सुख का मार्ग तुमने अपनी अज्ञानता की वजह से छोड़ दिया हो।
हो सकता है तुम्हें ठोकर लगी हो और तुमने पीड़ा के भय से अपना मार्ग, अपनी शक्ति अपनी पूरी ऊर्जा केवल और केवल दुखों से बचने के लिए और अपनी सुरक्षा के लिए लगा रखी हो। और इस क्रम में तुम्हें स्वार्थी, मतलबी और क्रूर बनने से भी गुरेज नहीं।
कभी समय मिले तो आंखे बंद करके स्वयं के साथ बैठो और ये सोचो कि तुम पिघल रहे हो, तुम्हारी चेतना तुम्हारे शरीर तक सीमित नहीं बल्कि तुम्हारी कल्पना के साथ साथ अनंत तक फैलती जा रही है। एक साथ सैंकड़ों सूर्य तुम्हारे ऊपर चमक रहे हैं। प्रारंभ में तुम्हारी अपूर्णता तुमसे लड़ेगी और तुम्हें बेचैन कर देगी क्योंकि ऐसा अनुभव तुमने अभी तक नहीं किया। परंतु तुम उससे लड़ना मत। उससे उलझना मत। इस क्रिया को कुछ समय कर लो तो तुम्हें लगने लगेगा कि जो तुमने ध्यान में महसूस किया था वो महज एक कल्पना जनित अनुभव नहीं बल्कि कुछ सत्य सा है। और थोड़े समय के लिए ही सही लेकिन तुमने पूर्णता को चख लिया है।
यही स्वाद तुम्हे बार बार ध्यान की ओर ले जायेगा। जिस दिन तुम्हे दूसरों में भी स्वयं दिखाई देने लगे और बिना प्रयत्न के दूसरों का अंतर्द्वंद्व तुम समझने लगे तब समझना तुमने मनुष्यता को पा लिया है। प्रेम और करुणा से तुम्हारा हृदय हमेशा भरा रहेगा और तुम पूर्णता और मीठे पानी के झरने जैसा बहता वो परम सुख का मार्ग पा लोगे।