मैं इधर देखूं या उधर देखूं वो ही नज़र आए जिधर देखूं इसक की रंग का गहरा असर है न कोई ग़म, न कोई फ़िकर है ज़माना सुर्ख आंखे लाल लेकर कंटीले कायदों की ढाल लेकर भले चाहे मिटाना प्रेम मेरा पर इस रात का होगा सवेरा संवर महबूब के साए-शजर में गहरी नीली आंखों के सफ़र में पुरानी सूनी शाखें खिल गई है ये रंगीन बारिश कुछ नई है बरसती चांदनी मुझपर ऐसी निखरी जंजीरे फ़लसफों की टूटी-बिखरी बर्ग-ओ-गुल लबों पर पिघल रहा हूं मैं कतरा-कतरा उसमें ढल रहा हूं।
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