कुछ बिखरा होगा बरसों पहले कोई चोट आई होगी दिल पर एक गहरा संताप या फिर बहुत थोड़ी मामूली सी बेचैनी, न जाने क्यों पसरी रहती है इनकी कालिमा जैसे पूनम की चांद को घेर लिए हों बादल घनेरे। दुखों का वज़न शायद ज्यादा होता है खुशियों से! ऐसा क्यों नहीं होता कि जब वो अल्हड़ बयार छेड़ जाती है मुझे, कर खुशियों से सराबोर, या फिर पैरों में लिपट रही नाज नखरे दिखाती बिलैया मुदित कर देती है, मेरा रोम-रोम उन चंद पलों का असीम आनंद क्यूं काफी नहीं जीवन भर के लिए ग़मों की उमर ज़्यादा क्यूं होती है? एक कतरा सुख क्या काफ़ी नहीं हमेशा के लिए!
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सारगर्भित भाषा में लिखी सशक्त रचना 👌👏
abhi kuch dino pehle hi Nirmal Verma ji ki Ek Chithda Sukh padhi thi. is kavita k sheershak ne apne aap hi kheench liya aur padhkar bahut achcha lga :)