संशयों का एक मायावी दानव तैयार बैठा था लीलने को सारी उम्मीदें, सारे सपने कर देने को निष्प्राण तैयार बैठा था मन में ढूंढने को एक कोना जो मिलते ही कर दे मुझे निहत्था और उड़ेल दे ढेर सारा विष हताशा, संदेह, और दुःख कितने ही रातें मैं हतभागा मृत्युदंड की प्रतीक्षा करता बिखरता रहा बूंद बूंद टूटता रहा हर सांस *** फिर एक सुबह घर से थोड़ी दूर चलते हुए हवा का एक हल्का सा झोंका मुझे चूम गया बरबस और मन में डेरा जमाए बैठा हुआ वो निष्ठुर दानव थोड़ी देर, बस थोड़ी देर के लिए गायब हो गया था मैने तय किया, कि अब यूं ही नहीं बीतेंगे दिन बेबसी में, अपराधबोध में ले आऊंगा रोशनी रात चांदनी से मांग ऐसी दुनिया बनाऊंगा जिसमें बरसेगा प्रेम और उमड़ आयेगा जीवन चहुंओर।
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Beautifully pictured inner conflicts and most importantly victory at the end -victory over unnecessary exaggerated inner demons
अत्यंत खूबसूरत रचना