जल रहा था मैं और उसने धुएं की शिकायत की थी मेरे बदन से फूट रही चिंगारियों को उसने ढोंग कहा था उसे नहीं चाहिए थे हारे हुए लोग जलते, वक्त के मारे हुए लोग प्रमाण चाहिए थे उसे बलिदानों की भूत की और भविष्य की उसे चाहिए था साफ़ सुथरा शिष्ट प्रेमी जिसे मालूम हो व्यापार के सारे नियम मैं मूरख 'प्रेमी' मेरी कोई 'चाह' न थी प्रेम शब्द का ज़िक्र भी नहीं किया मैंने वर्तमान में ही डूबा हुआ ढूंढता रहा ईश्वर, उससे होकर सब में।
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Absolutely beautiful. Really amazing!!
This one so beautifully written sir 👏🏻 loved it ,
मैं मूरख 'प्रेमी'
मेरी कोई चाह न थी
प्रेम शब्द का ज़िक्र भी नहीं किया कभी
वर्तमान में ही डूबा हुआ
ढूंढ रहा था ईश्वर, उससे होकर सब में। ✨🤌🏻
शिकयत जो प्रेम से बंधा है |