भाग्य तेरा था किसी वनिता के बालों में गूंथा जाना या ईश्वर के श्री चरणों में पड़ न्यौछावर हो जाना तू बड़भागा रे ओ गुलाब! जो उसके हिस्से आ पाया फीके रंगों में भी देखा उसने अपना ही तो साया इक तितली बेरंग कहां तक रंग किसी को दे पाती अलग थलग ही रही जिंदगी नहीं रहा कोई साथी एक रात सबसे छुपकर मधु तलाशने आई थी सूखे पड़े थे तुम साथ में कलियां भी मुरझाई थीं कुछ कौंधा था उर में उसके सुध-बुध खो बैठी जो सारी तेरा अंत स्वीकार ना उसको संकट था ये भारी बेरंग पंखों पर समेट कर ओस की बूंदे ले आई तितली का ये प्रेम देख नभ की आँखें भी भर आईं शशि-यामिनी चुप-चाप देखते मन ही मन मुसकाते थे रंग बेरंग सब एकरंग हुए तितली-गुलाब सुख पाते थे।
Thank you
and for suggesting the words “सूखा गुलाब” & “बेरंग तितली”.
निःशब्द कर दिया अपने
बहुत सुंदर
This was so beautifully written everyone who comes from a small town can feel these words ❤️ सपनों की होर में निकले बरे शहर की और ढलते सूरज को देख मन गांव लौट जाने को लगा l