"तेरे वुस'अत-ए-करम के किस्से किससे कहें हम फिर इक बार पहली सी मुहब्बत किससे करें हम तेरे साथ, शहंशाह था मैं अपनी मुकद्दर का अब इन दुश्वार लम्हों की शिकायत किससे करें हम
"बीत गई वो रात कुछ और थी उनसे मिली सौगात कुछ और थी इश्क या क़फ़स के हिज्जे मुझे नहीं मालूम पर वो पहलू में थे तो बात कुछ और थी"
"ये हसीं वहम वो भी कही बेचैन होंगे चांद होगा फिर भी फीके नैन होंगे मेरा पागल दिल हमेशा सोचता था क्या करेगा जब ये उनसे दूर होगा दूर रहकर भी मुसलसल जी रहा है। "सोचता था वक्त कितना तंग होगा क्या करेगा जब ना कोई संग होगा भीड़ में किसको ये ढूंढेंगी निगाहें सूनी पड़ जाएंगी ये कमबख्त बाहें "मेरा पागल दिल हमेशा सोचता था क्या करेगा जब कभी तन्हा पड़ेगा तन्हा होकर भी मुसलसल जी रहा है।"
दफ्न है सैंकड़ों रुबा'इयाँ मुझमें छुप गईं इस भीड़ में तनहाइयां मुझमें लोग कहते हैं मैं झूठा हूं फरेबी हूं छू लिया क्या अपनी ही परछाइयां मुझमें चाहते हो फिर तराशूं नज़्म कोई बेरहम! क्या लूट लोगे जो बची अंगड़ाइयां मुझमें दिल्लगी है दिल्लगी को दिल्लगी का नाम दो मत करो रौशन चराग़-ए-आशनाईयां मुझमें